साल 2021 से इंडिया में हर साल 15 लाख यानी कि ढेड़ मिलियन इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स निकलते हैं जबकि इनमें से सिर्फ 7% को ही इंजीनियरिंग जॉब मिल पाते हैं जबकि एक सर्वे के मुताबिक इन 15 लाख इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स में से सिर्फ ढाई लाख को ही जॉब मिल पाती है तो उस दावे का क्या जहां इंजीनियरिंग कॉलेजेस यह क्लेम करते हैं कि हम देते हैं 100% प्लेसमेंट हमारे यहां मिलती है 100% गारंटीड जॉब अगर ऐसा होता तो इन 15 लाख इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स में से कम से कम 10 लाख लोगों को जॉब मिल ही जाती है ना पर ऐसा नहीं हो पा रहा है तो आज हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर सच क्या है आइए पता करते हैं Reality of Campus Placement in Engineering Colleges
इंजीनियरिंग कॉलेजेस और यहीं से निकलते हैं यह 15 लाख ग्रेजुएट्स तो आखिर इतने इंजीनियरिंग कॉलेजेस बनाने की जरूरत ही क्यों पड़ गई सबसे पहले यही समझते हैं तो अगर इतिहास पे नजर डालें तो लगभग 30 साल पहले इंडिया में मैडस ऑफ इंजीनियरिंग शुरू हुई थी 1990 से 2000 के दशक में इंडिया में एक जबरदस्त आईटी बूम देखने को मिला था और यह सब पॉसिबल हुआ था इंडिया की लिबरलाइजेशन पॉलिसी 1991 के आने के बाद ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की इस रिपोर्ट को देखिए वर्ल्ड बैंक के डाटा के हिसाब से 1991 तक यानी कि 1991 तक इंडियन जीडीपी 6 %पर की ग्रोथ रेट से बढ़ रही थी जबकि इकोनॉमिक लिबरलाइजेशन 1991 के बाद 2003 से 2008 तक इंडियन जीडीपी 9% पर की ग्रोथ रेट के साथ पीक पे पहुंच गई थी 1991 के बाद बहुत सी मल्टीनेशनल कंपनीज ने इंडिया में अपना ऑफिस और सेटअप लगाना शुरू किया इसके लिए उन्हें जरूरत महसूस हुई आर्मी ऑफ इंजीनियर्स की ताकि वह इन मल्टीनेशनल कंपनीज के लिए सॉफ्टवेयर डेवलप कर पाते
सवाल यह है कि आखिर इन मल्टीनेशनल कंपनीज ने इंडियन इंजीनियर्स को ही क्यों चूज किया इसकी सबसे बड़ी वजह थी और आज भी है कि हम इंडियंस अच्छी इंग्लिश बोलते हैं दूसरी वजह थी हमारी सैलरी डिमांड्स जो यूएस और यूरोपियन इंजीनियर्स के मुकाबले काफी कम थी आज भी एक एवरेज फॉरेन कंपनी इंडियन इंजीनियर्स को हायर करके अपने लेबर कॉस्ट का 80% तक कम कर लेते हैं इसके अलावा इन मल्टीनेशनल कंपनीज के लिए इंडियन गवर्नमेंट ने भी बढ़िया आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करना शुरू कर दिया था यही वजह थी कि इंडिया में इंजीनियरिंग कॉलेजेस की डिमांड बढ़ने लगी और जब देश भर में इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स की मांग बढ़ी तो लोगों ने इसे एक बिजनेस अपॉर्चुनिटी की तरह देखा और अंधाधुंध तरीके से इंजीनियरिंग कॉलेजेस खड़े होते गए
एग्जांपल देखें तो 1994 में आंध्र प्रदेश में सिर्फ 32 इंजीनियरिंग कॉलेजेस में केवल 9335 सीट्स थी वहीं 2011 आते-आते 705 इंजीनियरिंग कॉलेजेस अस्तित्व में आ गए और सीट्स हो गए 2 लाख ऐसा देश भर में हुआ जैसे 1996 में उत्तर प्रदेश में सिर्फ 12 इंजीनियरिंग कॉलेजेस थे और अगले 25 सालों में 300 इंजीनियरिंग कॉलेजेस हो गए 500 से ज्यादा कॉलेजेस तो अकेले महाराष्ट्र में भी है बहुत से इंडियन पॉलिटिशियन भी इंजीनियरिंग कॉलेजेस और एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स के ओनर्स हैं जैसे रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के फॉर्मर प्रेसिडेंट और मेंबर ऑफ पार्लियामेंट ब्रिज भूषण सिंह भी 50 से ज्यादा स्कूल और कॉलेजेस के मालिक हैं क्योंकि किसी भी पॉलिटिशियन के लिए कॉलेज बनाने का परमिशन लेना और बाकी फॉर्मेलिटीज पूरी करना आसान होता है तो देश के ढेर सारे राज्यों में ऐसा दिखाई देता है
इसी तरह कॉलेज बिल्डिंग्स तो बन गए पर क्वालिटी ऑफ एजुकेशन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया AICTE यानी All India Council for Technical Education के मुताबिक इंडियन इंजीनियरिंग कॉलेजेस की हालत यह है कि लगभग 15 लाख बीई बीटेक सीट्स हैं इंडिया के 3291 इंजीनियरिंग कॉलेजेस में और 2016 से 2017 में यह 51 %पर वेकेंट थे वहीं 2016 में 8 लाख बीई बीटेक स्टूडेंट्स ग्रेजुएट हुए पर सिर्फ 40% स्टूडेंट्स को ही कैंपस प्लेसमेंट्स में जॉब मिल पाई वहीं आईआईटी कानपुर के चेयरमैन रह चुके आरसी भार्गव ने कहा था कि ज्यादातर इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स को बेसिक्स ऑफ इंजीनियरिंग भी पता नहीं होती है
इंजीनियरिंग कॉलेजेस के हाल यह है कि 1990 से 1991 में बीटेक और एमटेक के 8759 सीट्स थे जो सिर्फ 30 सालों में 2017 से 2018 आते-आते 16 लाख से ज्यादा हो गए यानी 18 टाइम्स ज्यादा इंडिया में इंजीनियरिंग कॉलेजेस की खराब हालत पर आपको ढेर सारी रिपोर्टिंग मिल जाएगी हाल ही में सैम ऑल्टमैन ने कहा था कि इंडिया को चैट जीपीटी बनाने की सोचनी भी नहीं चाहिए उस टाइम सीपी गुरनानी यह नाम बहुत ट्रेंड कर रहा था सीपी गुरनानी टेक इसके अलावा इंडियन इंजीनियरिंग कॉलेजेस में मैनेजमेंट कोटा सिस्टम चलता है जहां 15 पर सीट्स रिजर्व रख कर के स्टूडेंट से हाई डोनेशन लेकर के एडमिशन दिए जाते हैं लेकिन एआईसीटी ईबी से ट्रैक नहीं कर पाती है कि एक्चुअली ये रिजर्वेशन 15 पर ही रखे जाते हैं या उससे ज्यादा ऐसे डोनेशन से कॉलेजेस को बड़ी रकम की कमाई तो होती है पर उसका कितना परसेंटेज क्वालिटी एजुकेशन पर खर्च किया जाता है इसका भी कोई हिसाब नहीं है
अभी कुछ फैक्ट्स आप जानेंगे जो आप खुद समझ जाएंगे कि ज्यादातर इंडियन इंजीनियरिंग कॉलेजेस में पढ़ाया क्या जा रहा है जैसे The Aspiring Minds National Employability Report (NER) 2019 में कहा था सिर्फ 3.84% इंजीनियर्स ही टेक्निकल कॉग्निटिव और लिंग्विस्टिक स्किल्स रखते हैं जो स्टार्टअप्स में सॉफ्टवेयर रिलेटेड जॉब्स के लिए सूटेबल है सिर्फ 3% इंजीनियर्स के पास ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मशीन लर्निंग डेटा साइंस और मोबाइल डेवलपमेंट जैसी न्यू एज टेक्नोलॉजिकल स्किल्स हैं सिर्फ 40 % इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स ही इंटर्नशिप करते हैं और इंडियन इंजीनियरिंग कॉलेजेस में पढ़ाई बहुत ही थ्योरिया 60% इंजीनियर्सडस्ट्री रिलेटेड एप्लीकेशन कांसेप्ट पर बात ही नहीं करते हैं और सिर्फ 47% इंजीनियर्स ही किसी इंडस्ट्री टॉक को अटेंड करते हैं वहीं इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यूएसए और चाइना में कोडिंग जानने वाले इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स की संख्या इंडिया के मुकाबले तीन से चार गुना ज्यादा है
बहुत से स्टूडेंट्स इस झांसे में भी आ जाते हैं कि कॉलेज तो गारंटीड जॉब दे ही रहा है तो मैं तो एडमिशन ले ही लेती हूं कोर्स खत्म होते-होते जॉब तो मिल ही जाएगी तो आपका यह भ्रम भी हम दूर कर देते हैं आइए समझते हैं प्लेसमेंट असिस्टेंसिया इंस्टिट्यूट आपको कह रहा है कि हमारे यहां जॉब प्लेसमेंट असिस्टेंट है तो इसका मतलब जॉब लग ही जाएगी इसकी गारंटी नहीं है इसका क्लियर मतलब यह है कि प्लेसमेंट असिस्टेंसिया जाते हैं रिज्यूम प्रिपरेशन के टेक्निक्स बताए जाते हैं जॉब लीड्स दी जाती हैं और अगर कोई कंपनी हायरिंग के लिए आती है तो एलिजिबल कैंडिडेट्स को जॉब इंटरव्यू में बिठाया जाता है बाकी की आगे की जर्नी कैंडिडेट के हाथ में होती है
वहीं दूसरी और जॉब गारंटी का मतलब होता है स्टूडेंट को किसी भी हालत में जॉब दी जाएगी लेकिन ऐसा होता तो आज कोई भी बेरोजगार नहीं होता क्योंकि कैंपस प्लेसमेंट को लेकर के यह एक बड़ा मिथ है अगर आप कंपनी की नजर में एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया में फिट नहीं बैठते तो कोई भी कंपनी आपको हायर नहीं करेगी फिर चाहे कोई कॉलेज 100% एश्योर्ड जॉब गारंटी का कितना ही ढंडोरा क्यों ना पीटे यह सब प्रमोशनल ट्रिक्स होते हैं साल 2018 में 58% इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स को कैंपस प्लेसमेंट में जॉब ही नहीं मिल पाई थी तो इसका सलूशन क्या है आइए इस पर नजर डालते हैं
इंडिया में लगभग 5% इंजीनियर्स ही आईआईटी एनआईटी एंड ट्रिपल आईटी जैसे पैन इंडिया नेशनल लेवल ऑटोनोमस इंस्टिट्यूट से पास आउट होते हैं और मेजॉरिटी में लगभग 90% इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स आते हैं प्राइवेट और नॉन ऑटोनोमस स्टेट लेवल इंस्टिट्यूट से जिन्हें इंजीनियरिंग कोर्सेस ऑफर करने के लिए एआईसीटीई से अप्रूवल की जरूरत पड़ती है यानी इनमें से ज्यादातर के पास तो एआईसीटीई का अप्रूवल होता ही नहीं है तो अगर आप किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन ले रहे हैं तो पहले एआईसीटीई अप्रूवल को जरूर से चेक कीजिएगा कहीं ऐसा तो नहीं है कि आप इंजीनियरिंग में आउटडेटेड सिलेबस पढ़ रहे हैं जी सही सुना आपने क्योंकि अभी भी बहुत से इंजीनियरिंग कॉलेजेस में आउटडेटेड सिलेबस पढ़ाए जा रहे हैं कंप्यूटर साइंस का फिर भी ठीक है पर मैकेनिकल सिविल एंड इलेक्ट्रिकल में अभी भी 30 से 40 साल पुराना सिलेबस ही चल रहा है तो आप किसी कॉलेज का प्रोस्पेक्टस उठा कर के यह भी चेक कर सकते हैं कि वहां पर आपको क्या पढ़ाया जाएगा या पढ़ाया जा रहा है और इंडस्ट्री ट्रेंड क्या है या कौन सी स्किल डीमांड में है तभी आप अपने करियर को लेकर सही डिसीजन ले पाएंगे
इन्हीं आउटडेटेड सिलेबस का नतीजा यह है कि इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स की करंट जनरेशन में बहुत से कैंडिडेट्स को आईओटी इंटरनेट ऑफ थिंग्स बिग डाटा एनालिटिक्स क्लाउड कंप्यूटिंग जैसे ट्रेंडिंग टॉपिक्स एंड स्किल्स का अता पता ही नहीं है बहुत से कॉलेजेस में एडमिशन लेते हुए स्टूडेंट इस बात से इंप्रेस हो जाते हैं कि कॉलेज बिल्डिंग बहुत अच्छी है कैंपस बहुत ही शानदार है पर क्या वहां इंजीनियरिंग के कांसेप्ट समझाने लायक मॉडर्न लैब्स लाइब्रेरीज और इंफ्रास्ट्रक्चर है इस बात पे उनका ध्यान ही नहीं जाता
अगर आईआईटीएस का यह हाल है तो बाकी के प्राइवेट कॉलेजेस के इंफ्रास्ट्रक्चर का अंदाजा आप लगा लीजिए और इसलिए आपको कॉलेज चूज करते हुए इन सभी बातों का ध्यान रखना पड़ेगा वहीं इंजीनियरिंग सिर्फ टेक्निकल स्किल्स तक सीमित नहीं है सॉफ्ट स्किल्स जैसे कम्युनिकेशन प्रॉब्लम सॉल्विंग टीम वर्क अडेप्टबिलिटी जैसी चीजें भी आपको जॉब दिलवाने में हेल्प करती हैं अगर आप किसी मल्टीनेशनल कंपनी के लिए काम करने जा रहे हैं तो इंग्लिश पर आपकी अच्छी पकड़ होनी चाहिए और यह बात हम यूं ही नहीं कह रहे हैं अब आप इस आर्टिकल को ही देख लीजिए इंडियन इंजीनियर्स में स्पोकन इंग्लिश प्रोनंसिएशन फ्लुएंसी और ग्रामर को लेकर काफी गैप दिखता है पर सच्चाई यह भी है कि हमारे यहां वोकैबुलरी और इंग्लिश की अंडरस्टैंडिंग बेहतर है लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 6.8% इंजीनियर्स ही सही से इंग्लिश बोल पाते हैं और न्टेनििटी के साथ रिस्पॉन्ड कर पाते हैं तो ऐसे में अगर आप इंजीनियरिंग में एडमिशन लेने जा रहे हैं तो आपको अभी से स्पोकन इंग्लिश पर ध्यान देना होगा ताकि आप अपने करियर में बेहतर जगह पर पहुंच पाए
इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी एक ऐसा स्पेस है जहां पर फास्ट पेस लर्निंग मेंटालिटी रखनी पड़ती है आए दिन टेक्नोलॉजी का नया वर्जन मार्केट में आ जाता है प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेस अपडेट हो जाते हैं मोबाइल टेक्नोलॉजी बदल जाती है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बिग डाटा मशीन लर्निंग 3d प्रिंटिंग साइबर सिक्योरिटी जैसे ट्रेंडिंग टॉपिक्स पर काम हो रहा है तो ऐसे में जब अगर आप कंप्यूटर साइंस पढ़ने जाए तो कॉलेज या यूनिवर्सिटी के सिलेबसमें यह सब इंक्लूडेड है या नहीं आपको चेक कर लेना चाहिए इसके अलावा अगर आप रेस में बने रहना चाहते हैं तो दुनिया भर की टेक इंडस्ट्री किस ओर जा रही है इसकी अपडेट आपके पास होनी ही चाहिए इसलिए ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफार्म से सीखते रहिए
सबसे बड़ी बात अगर आप में जिंदगी भर सीखते रहने की मेंटालिटी है तभी टेक्निकल फील्ड या इंजीनियरिंग इंडस्ट्री का हिस्सा बनिए बातें कड़वी है पर यही सच्चाई है बहुत से हाईली पैकेज पाने वाले इंजीनियरिंग प्रोफेशनल्स कहते हैं कि अपनी इंजीनियरिंग के दौरान उन्होंने सेल्फ स्टडी पर बहुत फोकस किया था जहां से भी नॉलेज मिले बटोल लीजिए तब जाकर कहीं कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर जब रिजल्ट शीट चिपका जाएगी तो आपका नाम टॉप के स्टूडेंट्स में आएगा